Monday 10 September 2012

वेताल कहानियों की कुछ बातें

वेताल कहानियों की कुछ बातें

# रहस्मय  दूसरा  वेताल 
 
In 1st week of February Comic World will be celebrating 3rd year of its existence,yes,a whole three year..how fast time passes..seems its just a few days back when Comic World came into picture.With all of you i will be celebrating 3rd b'day of Comic World with quite a few gifts for all of you which shall obviously be comics and comics.
Coming to present post,its a Hindi Indrajal version of Sunday No.44,'The Jungle Tourneys' which ran from 19th Feb. to 20th March 1956.It was published as 4th issue of Indrajal with superb cover art by late Govind Ji.Initially transcription was just ok and not much thought was given into it to capture the essence of script but later on in early 80's transcription improved a lot and perhaps was the best of the Indrajal history.It remained unknown till end that who used to transcript Hindi versions of Indrajal.
In this 4th issue its of very ordinary standard,have a look yourself on this panel what Vetal says in Hindi,"....उसने सिर्फ मेरे कपड़े ही नहीं,मेरी इज़्ज़त भी लूट ली!" ha..ha...ha....ha...see,how improper transcription strips of Phantom dignity.


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# कथा तीसरे वेताल की
इस बार इस कथा में फ़ाल्क बता रहे हैं की कैसे सिकंदर का हीरे का प्याला वेताल के वृहद कोषागार में आया.
ये कथा और एक वजह से भी महत्व रखती है और वो है इस कथा में 'भारतवर्ष' का जिक्र होना,वैसे तो वेताल कथा में भारत का जिक्र होना कोई नयी बात नहीं है क्योंकि फ़ाल्क ने शुरू में वेताल का घर भारत में ही सोचा था और शुरुआत की सभी कहानियां भारत के शहरों 'मद्रास,बॉम्बे,कलकत्ता' आदि में ही घटित हुई थी,पर इंद्रजाल कॉमिक्स ने अतिरिक्त कुटनीतिक सतर्कता दिखाते हुए किसी भी विवाद को टालने के मंशा से संवादों आदि में कांट-छांट की जिससे की भारत से जुडाव किसी भी कथा में प्रतीत न हो,जैसे की 'बंगाला' को 'डंगाला' कर दिया,'The Belt' कथा में समुंद्री लुटेरे 'रामा' को 'रामालु' कर दिया गया था,यहाँ तक की इस कथा में भी 'India' को बदल के 'Xenia' कर दिया गया है.

हीरे के प्याले की जड़ें जुड़ती है तीसरे वेताल के समय तक जहाँ एक राजनैतिक षड़यंत्र के तहत उस दौर के सुल्तान मैमूद बिन एलिना की हत्या होने ही वाली थी पर ऐन मौके पर तीसरे वेताल का आगमन होता है,सुल्तान की जान बच जाती है और दोनों में मित्रता हो जाती है.
सुल्तान India(Xenia) की यात्रा को जाता है और वापस लौटता है वहां के महाराजा की लड़की पर आसक्त होकर.सुल्तान,जो अब तक वेताल पर बहुत भरोसा करने लगा था और उसको अपने वारिस के रूप में भी देखने लगा था,वेताल को अपनी मंगेतर और भावी पत्नी को लिवाने के लिए हीरे का प्याला उपहार सहित देकर भेजता है.राजकुमारी 'पुरा' इस बेमेल रिश्ते से खुश नहीं है पर उसको मजबूरन सहानभूत वेताल के साथ विदा होना पड़ता है.लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था,रास्ते में वेताल की मित्रभक्ति एवं निष्ठां राजकुमारी के प्रेम के आगे हार जाती है.आगे क्या होता है,क्या वेताल सुल्तान से बचकर राजकुमारी को भगा ले जाने में सफल हो सका,हीरे के प्याले की भूमिका क्या रही,सुल्तान ने इस विश्वासघात का बदला कैसे लिया ये सब जानने के लिए पढ़िए प्रस्तुत कथा जिसका शीर्षक है "कथा तीसरे वेताल की"


यह सन्डे न.122(26th August 84' to 17th Feb 85') का इंद्रजालिक संस्करण है जिसका अंग्रेजी शीर्षक था "Alexander's Diamond Cup".इंद्रजाल कॉमिक्स ने कूटनीतिक कारणों से वास्तविक कहानी के संवादों में फेर-बदल की,कुछ पैनल्स में कांट-छांट की और यहाँ तक की एक चरित्र का नाम भी बदल दिया.राजकुमारी पुरा की नौकरानी या मेड का वास्तविक नाम था 'अरुणा' पर इंद्रजाल वालों ने उसे बदल कर 'रुना' कर दिया जिससे के कही से भी इस कहानी का सम्बन्ध भारतवर्ष से न झलके.

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# चौथा पुत्र
दोस्तों,महाबली वेताल के जन्म-मास उत्सव को मनाते हुए हम आज एक और लोमहर्षक वेताल कथा पर बात करेंगे जो अपने-आप में कई कारणों से विशिष्ट हैं । यह एक ऐसी कथा है जिसमे कई वेताल मानकों और स्थापित परम्पराओं को तोड़ा गया है और मज़े की बात यह है की इन मानकों को किसी और ने नहीं बल्कि खुद ली-फ़ाल्क ने तोड़ा है और मुझे भरपूर शुबहा है कि इन तथ्यों कि तरफ़ शायद ही पहले किसी का ध्यान गया हो ।

क्या हैं वो वेताल परम्पराएं और क्या हैं वो मानक इन पर हम आगे तो बात करेंगे ही लेकिन उससे पहले बात करते हैं इस कहानी की अन्य विशेषताओं पर ।  वेताल-पुरखों के कारनामों पर आधारित कथाएँ हमेशा से सामान्य से अधिक रोमांचक और दिलचस्प हुआ करती हैं और यदि कथा खुद फ़ाल्क द्वारा लिखित हो तो फिर क्या कहने !

ऐसी ही एक सन्डे कथा है S-137,'The Fourth Son' या 'चौथा पुत्र' जो अख़बारों में नज़र आई थी 18 अगस्त 91 से लेकर 17 मई 1992 तक यानि की इंद्रजाल कॉमिक्स के दु:खद अवसान(1990) के उपरांत जिसकी वजह से यह कहानी इंद्रजाल कॉमिक्स के पन्नो की शोभा तो न बन सकी लेकिन डायमंड कॉमिक्स के डाईजेस्ट न.61/62 में अवश्य ही इसने अपनी सतरंगी छटा बिखेरी ।


इस कहानी में वेताल-परिवार की उन बातों की तरफ़ तवज्जो दिलाई गयी थी जिन्हें एक आम वेताल पाठक  काफी अरसे से सोचता आ रहा था जैसे की क्या किसी वेताल पुत्र ने अपनी परंपरा के प्रति अरुचि नहीं दिखाई,क्या वेताल परिवार में हमेशा सिर्फ़ हट्टे-कट्टे,हरफ़नमौला,स्वस्थ शरीर और मानसिकता वाले अति-प्रतिभाशाली उच्च चरित्र वाले लड़को ने ही जन्म लिया,क्या कभी कोई 'कमज़ोर' और 'अनफिट' वेताल नहीं हुआ,क्या कभी कोई वेताल 'अशिक्षित' नहीं रहा,क्या हमेशा से परिवार का बड़ा बेटा ही वेताल बनता रहा !

इस कहानी में ली-फ़ाल्क ने पाठकों की इन सहज जिज्ञासाओं का उत्तर दिया है और बताया है की आँठवे वेताल के चार पुत्रों में से बड़े तीन पुत्रों ने अपने परिवार की परंपरा अपनाने से इंकार किया जिसके फलस्वरूप अशिक्षित और शारीरिक रूप से विषमता लिए हुए चौथे पुत्र ने बावजूद अपने छोटे कद के परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया ।

बांदार बौनों को हमेशा ही वेताल को एक पूज्यनीय स्वरुप में लेते हुए दिखाया गया है,यहाँ तक की शुरूआती कहानियों में बांदार बौनों के बीच वेताल का दर्जा जंगल का देवता या मालिक जैसा दर्शाया गया है तो क्या कोई कल्पना भी कर सकता था की यही बांदार कभी वेताल की हंसी या मज़ाक उड़ाने के बेअदबी भी कर सकते हैं !!

लेकिन ऐसा हुआ और ऐसा राजनैतिक और कूटनैतिक कारणों से ली फ़ाल्क ने इसलिए और दर्शाया जिससे की बीसवी शताब्दी के उत्तरार्ध में प्रकाशित इस कहानी में वेताल और अश्वेत बांदारों का रिश्ता मालिक-सेवक की बजाये एक दुसरे का सम्मान करने वाले पुश्तैनी मित्रों का ज़्यादा लगे ।
इस कहानी की एक और खासियत है और वो यह की इस कहानी में किसी भी वेताल की मृत्यु का विस्तृत वर्णन है जो इससे पहले की कहानियों में सिर्फ़ सांकेतिक रूप से या बड़े ही संक्षिप्त तरीके से बताया जाता रहा था । इस कथा में आँठवे वेताल की मृत्यु क्यों और कैसे हुई इसका विस्तृत तरीके से वर्णन किया गया है जोकि इस कथा को विशिष्टता प्रदान करती है वर्ना इससे पहले की कथाओं में किसी भी वेताल की मौत कैसे हुई इसपर कभी भी अच्छी तरह से रौशनी नहीं डाली गई ।
आपको यह जानकर भी हैरानी होगी की ली-फ़ाल्क ने वेताल की धार्मिक आस्था उजागर करने के प्रति बड़ी सतर्क-उदासीनता दिखाई है ।  क्या आपको ऐसी किसी स्ट्रिप या कहानी याद है जिसमे वेताल की आस्तिकता या नास्तिकता को खुल कर प्रकट किया हो !! शायद नहीं ना !! क्योंकि ऐसी कहानियां बहुत ही कम हैं जिसमे वेताल की ईश्वर के प्रति आस्था या विश्वास की झलक मिलती हो या फ़िर किसी भी दृश्य में वेताल को ईश्वर का नाम लेते चित्रित किया गया हो ।

मौजूदा कहानी इस बात के लिए भी ख़ास श्रेणी में लायी जा सकती है क्योंकि इस कहानी में बड़े ही साफ़ तौर से वेताल की आस्तिकता के दर्शन होते हैं ।  ज़रा गौर फरमाइए इस पैनल पर जिसमे जातुन खान के दरबार में वेताल को शासक के सामने घुटनों के बल पेश होने का निर्देश दिया जाता है और वेताल बड़े ही स्वाभिमानी शब्दों में कहता है की "मैं सिवाय खुदा के किसी और के सामने घुटने नहीं टेकता" 
शुरू की कहानियों में कभी भी वेताल को ईश्वर का ज़िक्र करते नहीं पढ़ा गया है जिसकी एक ही वजह समझ में आती है की फ़ाल्क पाठकों को प्रार्थना के बजाये कर्म पर ज़्यादा विश्वास कर अपनी समस्याएं सुलझाने का सन्देश देने में विश्वास रखते होंगे ।  लेकिन जब बाद के वर्षों में वेताल आलोचकों/अनुसंधानियों ने वेताल की आस्तिकता/नास्तिकता पर प्रश्न उठाये तब जाकर कहीं फ़ाल्क ने वेताल की आस्था को साफ़ तौर से उजागर करना ज़रूरी समझा ।

चलिए अब बात करते हैं उन वेताल मानकों की जिन्हें किसी और ने नहीं बल्कि खुद ली-फाल्क ने तोड़ा । यह तो आप जानते ही हैं की किसी भी वेताल का चेहरा और आँखे पाठकों को कभी नहीं दिखाई जाती और ऐसे अवसरों पर जहाँ वेताल ने नकाब नहीं पहना होता वहां उसके चेहरे/आँखों को परछाईं आदि से छुपा दिया जाता था । अगर कभी बिल लिग्नेट जैसे चित्रकार ने वेताल की आँखे दिखने की घृष्टता की भी तो उन्हें तुरत-फुरत बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ।
अब ऐसे में क्या आप कल्पना कर सकते हैं की इस कहानी में वेताल का चेहरा एक नहीं बल्कि दो-दो बार बड़े ही साफ़ तौर पर दिखाया गया हो !

सबसे पहली बार तो नवें वेताल का चेहरा तब दिखाया गया जब अपने पिता की मृत्यु के बाद उसने वेताल पोशाक तो पहन ली लेकिन बांदार बौनों द्वारा अपने छोटे कद का उपहास उड़ाने से जन्मी हीनभावना और अशिक्षित होने की वजह से पनपे आत्मविश्वास की कमी के चलते उसने तब तक वेताल बनने को मना किया जब तक वो खुद को इस महान गौरव के लायक साबित न कर दे ।
ठीक है इस प्रकरण में चेहरा दिखाने की वजह यदि यह कही जा सकती है कि चूँकि किट-4 उस समय तक खुद को वेताल के पदवी के लायक नहीं समझता था इसलिए उसने पहले अपने पिता की हत्या का बदला लेकर खुद को इस पदवी के लायक बनाना मुनासिब समझा,और चूँकि अपने पिता की हत्या का बदला लेने वाले कारनामे के दौरान वह वेताल नहीं था इसलिए उसका चेहरा दिखाना कतई तौर पर किसी वेताल-मानक को भंग नहीं करता । लेकिन उसके अपने पिता की हत्या का बदला ले लेने और बांदार बौनों का भरोसा जीत कर आत्मविश्वास और अभिमान के साथ वेताल-पोशाक धारण करने के बाद भी उसका चेहरा दिखलाया गया !!
यह तो बड़े ही साफ़ तौर पर उन वेताल-मानकों का उल्लंघन हैं जिन्हें किसी और ने नहीं बल्कि खुद ली-फाल्क ने ही स्थापित किया था क्योंकि इस कहानी के और 30 वर्षों से वेताल के चित्रकार रहे साईं बैरी खुद के (अ)विवेक से ऐसा कुछ करेंगे इसका कदापि कोई औचित्य नहीं बनता ।

खैर,जो भी हो उससे इस कहानी की रोमांचकता और लोमहर्षकता पर कोई असर नहीं पड़ता जिसे आप स्ट्रिप के रूप में भी पढ़ सकते हैं और रंगीन पन्नो पर भी जिसे डायमंड कॉमिक्स ने प्रकाशित किया था ।

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# " जंगल से बुलावा "


यह कहानी दैनिक स्ट्रिप न: 143 "The Tree House " का हिंदी रूपांतर है , जिसे Times of India वालों नें इंग्लिश में "Call Of The Jungle " के नाम से और हिंदी में "जंगल से बुलावा " के नाम से 1982 में अपने 394 वें अंक में प्रकाशित किया  , हालाँकि प्रस्तुत कहानी में स्ट्रिप के पहले हिस्से को दर्शाया गया है , और TREE HOUSE  की शेष कहानी इंद्रजाल नें अपने 400 वें और 401 वें अंक "वेताल का हवामहल' में दो भागों में पूर्ण किया |
  प्रस्तुत कहानी में डायना के चले जाने के बाद वेताल का उदास रहना और डायना के खयालों में खोये रहना साईं बैरी नें अपने चित्रों से बखूबी दर्शाया है |
  इस कहानी का मुख्य आकर्षण ही  वेताल और डायना का  जुदाई की उदासी की वजह से एक दुसरे के ख्यालों में  ही हर पल खोये रहना है |
  लेकिन इस जुदाई के डंक नें बुरी तरह से डसा है हमारे वेताल को , इतना उदास और खोया खोया सा तो मैंने वेताल को पहले कभी नहीं देखा |
और तन्हाई नें वेताल को यह कहने पर मजबूर कर ही दिया "डायना, काश तुम यहाँ होती , मणिमहल में ! :)
वेताल के बेठने के अंदाज से ही पता चल रहा है की वो कितना सूनापन महसूस कर रहा है
  लेकिन इन्तहा तो तब होती है जब लोंगो और वाम्बैसी कबीले  के मुखिया पानी के झगडे को निपटाने के लिए वेताल को मदद के लिए बुलाते हैं लेकिन यह क्या वेताल को यह तक पता नहीं की कौन क्या बोल रहा है , सब सिर के ऊपर से जा रहा है , पर क्यों ? चलिए देखते हैं |
सबसे बढ़िया आवाज जो बिरहा के सताए वेताल के दिल से निकलती है "तेज क्यों चल रहे हो तूफान ? अब वे (डायना) बीहड़ वन में नहीं हैं !" जबरदस्त !!
जंगल की एक पुरानी कहावत यह भी बननी चाहिए थी की  "जब कटिना और जम्बु चलतें हैं तो सब रास्ता खुद ब खुद बनता जाये " |
चलिए अब कहानी में 'ट्विस्ट' लातें हैं , एक साधारण ख़त नें वेताल के चेहरे पर चिंता की लकीरें खींच दी , मन में बुरे बुरे विचार पनपने लगे
नहीं नहीं , बस अब और नहीं , मैं वेताल को और दुखी नहीं देख सकता , चलिए वेताल को एक खुशखबरी सुनाते हैं  डायना के मुंह से ही , लेकिन यह डायना नें फ़ोन पर बात करते करते हाथ से ऐसा क्या कर दिया की वेताल फिर से चहकने लगे , और नाचनें पर भी मजबूर हो गए ,
"यह आपने क्या कह दिया .. की होने लगा दिल में कुछ कुछ कुछ कुछ .. यह आपने ....."
अरे भाई ये ही तो फर्क है इंद्रजाल और स्ट्रिप में , डायना नें यह कहा जिसे इंद्रजाल वालों नें नहीं दिखलाया , तभी तो पूरी कहानी का मजा लेना हो तो स्ट्रिप को जरुर पड़ना चाहिए , अब इस चित्र को देख कर समझ आता है की क्यों वेताल अपने होश खो बेठे :) यह चित्र Daily Strip न: 143 "The Tree House " में से लिया गया है  |
ह्म्म्म , यह आवाज तो किसी को भी झुमने पर विवश कर दे , और ऊपर से यह सुरीली धवनि निकालने वाली डायना हो तो बस ! मदहोश होना स्वाभाविक ही है |

शेरा और रेक्स भी गुलाटी मारनें लगे यह पता लगने पर की डायना आ रही है ! दरअसल डायना का ऑफिस डंगाला  में खुलने जा रहा है , और डायना वहीँ पर रहने आ रही है , और अब  वेताल को बंदोबस्त करना है   इस बला सी खुबसूरत डायना के समान ही खुबसूरत एक मकान का , और बस यहीं से शुरू होती है "हवामहल" को बनाने की दिशा में पहला कदम

प्यार , जुदाई , उदासी , हताशा और फिर से दो प्रेमियों के मिलन की ख़ुशी को बखूबी दर्शाया गया है इस नायाब कहानी में श्री ली फ़ाल्क द्वारा, कवर की खूबसूरती को चार चाँद लगाये हैं शेहाब जी नें |

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