Monday 10 September 2012

भारतीय कॉमिक्स का सफरः अतीत से अब तक

भारतीय कॉमिक्स का सफरः अतीत से अब तक

भारतीय कॉमिक्स का सफरः अतीत से अब तक

अमर चित्रकथा कॉमिक्स अब एंड्रायड एप्लीकेशंस के साथ मोबाइल पर इंटरनेलशन मार्केट में उपलब्ध है. एसीके मीडिया इन एनीमेशन फिल्में बनाने के लिए कई बड़ी कंपनियों से करार कर रहा है. हर साल अमर चित्रकथा के जरिए इंट्रोड्यूस कैरेक्टर्स पर आधारित मोबाइल गेम्स रिलीज किए जा रहे हैं. इनमें से अर्जुन के कैरेक्टर पर आधारित मोबाइल गेम इस वक्त वियतनाम में नंबर वन चल रहा है.
अस्सी और नब्बे के दशक में पॉपुलर राज कॉमिक्स को हम अब ऑनलाइन परचेज कर सकते हैं. इसके कैरेक्टर डोगा पर अनुराग कश्यप जैसे सीरियस फिल्ममेकर बिग बजट मूवी प्लान कर रहे हैं.
सन 2010. आबिद सूरती (जी हां, वही ढब्बू जी वाले) के फेमस कैरेक्टर बहादुर का नया अवतार सामने आता है. इस बार आप उसे इंटरनेट पर पढ़ और डाउनलोड कर सकते हैं, और उसका फेसबुक फैन पेज भी है, जिसके अब तक हजार से ज्यादा फैन्स तैयार हो चुके हैं.

न्यू एज स्प्रिचुअलिटी गुरु दीपक चोपड़ा और इंटरनेशनल फेम के डायरेक्टर शेखर कपूर ने इंडियन माइथोलॉजिकल स्टोरीज पर इंटरनेशनल मार्केट के लिए करीब चार साल पहले वर्जिन ग्रुप के रिचर्ड ब्रान्सन के साथ करार किया था. इस वक्त लिक्विड कॉमिक्स से देवी, साधु, गणेश, बुद्धा, स्नेक वूमेन, मुंबई मैक्गफ जैसे कैरेक्टर्स ने पश्चिम में धूम मचा रखी है. कुछ कहानियों पर जॉन वू (फेस ऑफ वाले) जैसे डायरेक्टर फिल्म भी प्लान कर रहे हैं.

यह है इंडियन कॉमिक्स की मौजूदा तस्वीर. आइए जरा अतीत की तरफ चलते हैं...
  फ्लैशबैक



यह बात है 1967 की, टेलीविजन ने भारत में कदम रखे ही होंगे, अनंत पई दिल्ली की एक शाम दूरदर्शन से टेलीकास्ट हो रहा क्विज शो देख रहे थे. शायद टॉपिक था, माइथोलॉजी. वे यह देखकर हैरान हो गए जब एक बच्चा भगवान राम की माता का नाम न बता सका. वहीं ग्रीक माइथोलॉजी से जुड़े कई सवालों का जवाब वे फटाफट देते गए. उसी साल अनंत ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ दी और भारतीय पौराणिक कथाओं पर सरल भाषा और सुंदर चित्रों के साथ कॉमिक्स का प्लान किया. कई पब्लिकेशंस ने उनका आइडिया रिजेक्ट कर दिया. अंत में बात बनी इंडिया बुक हाउस के इनिशियेटिव से.
इसके बाद वही हुआ जो हर सफल इंसान की कहानी के साथ होता है. शुरुआत में स्ट्रगल के बाद अमर चित्रकथा बीस भारतीय भाषाओं में इंडिया की सबसे ज्यादा बिकने वाली कॉमिक्स बन गई. यह वो वक्त था जब इंडियन सोसाइटी का अरबनाइजेशन हो रहा था. ज्वाइंट फैमिली धीरे-धीरे न्यूट्रल फैमिली में शिफ्ट हो रही थी. दादा-नानी से सुनी-सुनाई जाने वाली कहानियों का चलन खत्म हो रहा था. घर में उस खाली स्पेस को धीरे-धीरे अमर चित्रकथा भरने लगा. यह एक ऐसी कॉमिक्स बन गया जिसे देखकर पैरेंट्स नाराज नहीं होते थे, स्कूलों की लाइब्रेरी में और बच्चों के स्कूल बैग में भी ये नजर आने लगे.

साइड स्टोरी


जिस वक्त अनंत पई ने टाइम्स आफ इंडिया की जॉब छोड़ी, वह ग्रुप इंद्रजाल कॉमिक्स के नाम से बच्चों के लिए एक नया पब्लीकेशन लांच कर रहा था. ली फॉक के कैरेक्टर्स फैंटम और मैन्ड्रेक लाखों बच्चों के लिए बन गए वेताल और जादूगर मैंन्ड्रेक. ‘द घोस्ट हू वाक्स’ बन गया ‘चलता फिरता प्रेत’. शानदार मुहावरेदार अनुवाद ने इन कैरेक्टर्स को घर-घर में पॉपुलर कर दिया.
इंद्रजाल कॉमिक्स ने बहादुर नाम से एक भारतीय कैरेक्टर भी इंट्रोड्यूस किया. बहादुर के क्रिएटर थे हिन्दी-गुजराती के मशहूर लेखक और पॉपुलर स्ट्रिप ढब्बू जी के रचयिता आबिद सूरती. बाकायदा रिसर्च के बाद चंबल के बैकड्राप पर क्रिएट की गई स्टोरी और गोविंद ब्राहम्णिया के सिनेमा के स्टाइल में फ्रेम की गई तस्वीरों ने बहादुर को भारत की क्लासिक कामिक्स बना दिया.
यू टर्न
सन 1980 तक इसकी पॉपुलैरिटी अपने चरम पर थी. मगर आने वाले कुछ सालों में यह पब्लीकेशन बंद हो गया. कामिक्स घरों से लगभग गायब होने लगी. कागज की कीमतें और प्रोडक्शन कास्ट बढ़ने के कारण इंडिया बुक हाउस को भी कीमत बढ़ानी पड़ी नतीजा वे मिडल क्लास की पहुंच से बाहर हो गए. पल्प फिक्शन और पॉपुलर बुक्स छापने वाले कुछ पब्लिशर्स ने भारतीय कैरेक्ट्स इंट्रोड्यूस करने चाहे, मगर घटिया तस्वीरों, इमैजिनेशन का अभाव, बच्चों और टीनएजर्स की साइकोलॉजी न पकड़ पाना- कुछ ऐसे फैक्टर रहे, जिनके चलते वे बुरी तरह फ्लाप हो गए.
  एक के बाद एक कॉमिक्स पब्लीकेशन खुले और साल-छह महीनों में बंद हो गए. कुछ तो पहले सेट से आगे बढ़ ही नहीं पाए. कुछ बड़े पब्लिशिंग हाउस ने इंद्रजाल कॉमिक्स की सक्सेस स्टोरी दुहराने की कोशिश की. अब तक सिर्फ एलीट क्लास को उपलब्ध एस्ट्रिक्स हिन्दी में आया, चंदामामा ने वाल्ड डिज्नी के कैरेक्टर्स इंट्रोड्यूस किए- मिकी माउस, डोनाल्ड और जोरो. उन्होंने दूसरी कोशिश की सुपरमैन और बैटमैन को लाने की. अनुवाद की दिक्कतों के चलते बच्चे उनसे दूर रहे.
  राइजिंग

 
पॉकेट बुक्स पब्लिश करने वाले राज कॉमिक्स ने सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज, परमाणु और डोगा जैसे कैरेक्टर इंट्रोड्यूस किए. देखते-देखते ये बच्चों में पॉपुलर हो गए. दूरदर्शन के विस्तार से स्पाइडरमैन, स्टार ट्रैक और स्ट्रीट हॉक पापुलर हो चुके थे. जमीन तैयार थी. एक बार फिर कॉमिक्स ने बच्चों की दुनिया रंगीन कर दी.
  पहले से पॉपुलर चाचा चौधरी, राजन इकबाल, बांकेलाल, भोकाल, फाइटर टोड्स, भेड़िया जैसे अनगिनत कैरेक्टर सामने आए. इन पर टीवी सीरियल प्लान होने लगे. कार्टून नेटवर्क और पोगो जैसे चैनलों ने बच्चों के पढ़ने का स्पेस तो छीना मगर इंडियन कॉमिक्स इन छोटे-मोटे झटकों को झेलने के लिए मजबूती से खड़ा था.
  क्लाइमेक्स बंगलूरु में इंजीनियर और मैनेजमेंट के बैकग्राउंड वाले एक युवा श्रेयस श्रीनिवास ने अपने कुछ साथियों की मदद से लेवेल टेन कामिक्स स्टैबलिश किया. वे बतौर यंग इंटरप्रन्योर ब्लूमबर्ग के शो द पिच के विनर रहे और उन्हें पांच करोड़ की इन्वेस्टमेंट अपारचुनिटी मिली है. फेसबकु पर लेवेल टेन कामिक्स के दस हजार से ज्यादा फैन्स हैं.
  नोटः यह आलेख आई-नेक्स्ट के भारतीय कॉमिक्स पर केंद्रित विशेष अंक के लिए लिखा गया था, जिसे अनंत पै के निधन पर उनको श्रृद्धांजलि स्वरूप तैयार किया गया था.

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वे कामिक्स के पन्ने और ढेरोँ कहानियाँ. By Navbhart times.

एक वह वक्त भी था, जब दुनिया आज की तरह तकनीक केइशारों पर नहीं नाचती थी। तब बच्चों की सबसे प्यारी दोस्त कॉमिक्स हुआ करती थी। गर्मी की छुट्टी का मतलब ढेर सारी कॉमिक्स और मस्ती हुआ करती थी। लेकिन वक्त बदलने के साथ बच्चों के दोस्त और पसंद भी बदलनेलगे। वह कॉमिक्स इरा भले अब गुजरे जमाने की बात हो, लेकिन कॉमिक्स से लोगों काजुड़ाव कम नहीं हुआ है। खुद कॉमिक्स ने उतार-चढ़ाव भरे दौर से निकलकर नए मिजाज और कंटेंटके बूते नए वक्त में अपनी अहमियत कायम रखी है। कॉमिक्स के सफर और उसके साथ नॉस्टैल्जिक जुड़ाव के बारे में बता रहे हैं नरेंद्र नाथ :
अमर चित्र कथा
1967 में अनंत पाई ने बच्चों के लिए अमर चित्र कथा इस मंशा के साथ शुरू की थी ताकि उन्हें मनोरंजनके साथ ज्ञान भी मिले। उनकी यह सोच काफी दूर तक कामयाब साबित हुई। 70 और 80 के दशक में अमर चित्र कथा ने रेकॉर्ड बिक्री की।एक अनुमान के मुताबिक इस दशक में 10 करोड़ से ज्यादा कॉमिक्स बिक गईं। इस पीढ़ी के बच्चों के लिएपौराणिक-ऐतिहासिक और महापुरुषों से जुड़ी कहानियों को खेल-खेल में समझाने-बताने का क्रेडिट अमर चित्र कथा को ही जाता है। इसी दौर में बच्चों केमनोरंजन के लिए हल्की-फुल्की कहानियों पर आईं कॉमिक्स भी बिकीं। रिसर्च में यह पाया गया कि बच्चे जितनी सहजता से कॉमिक्स केसाथ कनेक्ट करते हैं, उतनाकिसी भी दूसरी चीज से नहीं। हालांकि 90 के दशक तक आते-आते कॉमिक्स-कथा कीडोर कमजोर होने लगी।
मुश्किल वक्त
80 और 90 के दशक के दौरान कागज की कीमतें बेतहाशा बढ़ीं। कॉमिक्स महंगी होने लगीं। इसी बीच बच्चोंके मनोरंजन के लिए विडियो गेम और दूसरे विकल्प भी आने लगे। कॉमिक्स कंटेंट के मोर्चे पर लगातार पिछड़रही थी। इन तमाम फैक्टर्स ने कॉमिक्स के बाजार को बुरी तरह प्रभावित किया। उसके प्रकाशन बंद होने लगे। यह उस वक्त एक ग्लोबलट्रेंड था। कॉमिक्स से जुड़ी यादें कमजोर पड़ने लगीं। ऐसा लगने लगा कि कॉमिक्स युग का अंत करीब है।
ऐसे बढ़ा दायरा
लेकिन कॉमिक्स का इमोशनल नॉस्टैल्जिया इसे फिर से रास्ते पर ले आया। कंटेंट मे नए जमाने के मुताबिक बदलाव होने लगे और उसकी मजबूती और बेहतरी के लिए कोशिशें शुरू हुईं। नए किरदार गढ़े गए, कॉमिक्स को इंटरनेट पर पेश किया जाने लगा और उसे पढ़ने का जुनून फिर बढ़ा। पहले 50 पैसे देकर चुपके से लाइब्रेरी से चाचा-चौधरी, नागराज, सुपर कमांडो ध्रुवकी कहानियां पढ़ने वाले, इंटरनेट पर इनके कारनामे आसानी से पढ़ने लगे। फेसबुक ने इसे और तेजी दी।सिर्फ फेसबुक पर ही कॉमिक्स से जुड़े दो दर्जनपेज हैं, जिसे लाखों लोग पसंद कर रहे हैं। अमर चित्र कथा ने फेसबुक पर अपना पेज शुरू किया तो एंड्रॉयड फोन ऐप्लिकेशन के जरिए मोबाइल पर अमर चित्र कथा सुलभ होने लगी। मोबाइल गेम्स कॉमिक्स के किरदार पर बनने लगे। ग्राफिक नॉवल कॉमिक्स के ढांचे पर आने लगी। एक तरफ सुपरस्टार शाहरुख खान ने अपनी फिल्म 'रा.वन' के किरदारों के साथ कॉमिक्स लॉन्च करने की घोषणा की तोदूसरी तरफ आईपीएल के दौरानदिल्ली डेयरडेविल्स की टीम पर आधारित एक कॉमिक्स सीरिज निकली। इस तरह कॉमिक्स ने अपने को तमाम पॉप्युलर सिंबल्स से जोड़ लिया। भारत में कॉमिक्स सेजुड़े जानकार मानते हैं किदो-तीन सालों में कॉमिक्स फिर से एक नए मुकाम पर होगी।
कॉमिक्स की इकनॉमिक्स
कॉमिक्स की इकनॉमिक्स भी यही बताती है कि अब इसके दिन फिर रहे हैं। कॉमिक्स का हर साल एक विश्वस्तरीय मेला आयोजित किया जा रहा है। भारत के कॉमिक्स बाजारकी बात करें तो फिलहाल वह करीब 100 करोड़ तक पहुंच चुका है। आने वाले वक्त में इससे इन्फोटेनमेंट फील्ड के कई बड़े प्लेयर्सजुड़ने की तैयारी कर रहे हैं, जिससे इसकी इकनॉमिक्सको बूम मिलने की संभावना है।
वक्त से आगे चलना होगा:प्राण
एक गलत धारणा बन गई है कि कॉमिक्स की दुनिया सिमट रही है। हालात इसके ठीक उलट, बल्कि बेहतर हैं। मैंने 1960 से कॉमिक्स की दुनिया को बहुत करीब सेदेखा है। उन अनुभवों के आधार पर कह सकता हूं कि कॉमिक्स की दुनिया अपने सबसे बेहतर वक्त में जाने वाली है। मैंने जब इस फील्ड में कदम रखा था तब देश में सिर्फ एक ही प्रकाशक हुआ करता था। आज इनकी संख्या 20 से अधिक है। हां, बीच में एक ऐसा वक्त जरूर आया, जब ऐसा लगा कि कॉमिक्स की दुनिया सिमटरही है। बच्चे इससे दूर होरहे हैं। यह वक्त था ग्लोबल तकनीक और टीवी के प्रवेश का। इधर कॉमिक्स कीदुनिया स्थिरता के दौर से गुजर रही थी। नए प्रयोग नहीं हो रहे थे। बदलते वक्त के मुताबिक कॉमिक्स की दुनिया नहीं बदल रही थी। लेकिन जैसे ही वक्त कीनब्ज को पकड़कर आगे बढ़ने की कोशिशें शुरू हुईं, अच्छे नतीजे सामने आने लगे। दरअसल, कॉमिक्स की 'नॉस्टैल्जिया वैल्यू' इतनी मजबूत है कि इसकी हस्ती मिटाना आसान नहीं होगा। मैं 2006 में अमेरिका गया था- वर्ल्ड कार्टून सोसायटी ऑफ अमेरिका में भाग लेने। वहां आम राय बनी कि हमें टीवी की शक्ति को स्वीकार कर उससे होड़ लगाने की बजाय एक दूसरे के पूरक सहयोगी के रूप में खुद को ढालना होगा। पुराने कॉमिक किरदारों पर टीवी सीरियल बन रहे हैं। और मेरे चर्चित किरदार चाचा चौधरी सहित तमाम कॉमिक किरदारों पर बने सीरियल न सिर्फ टीवी के लिए हिट रहे, बल्कि इनका असर इधर भी हुआऔर कॉमिक्स की बिक्री बढ़ी। लोगों तक कॉमिक्स पहुंचने के पहले दो ही जरिये थे - प्रकाशक और विक्रेता। लेकिन अब कॉमिक्स के बाजार में आने के कई माध्यम हैं। तकनीक के जरिए ऑनलाइन कॉमिक्स लाई गईं और डिजिटल कॉमिक्सकी मांग बढ़ी।
चूंकि आज के बच्चे ज्यादा स्मार्ट हैं, इसलिए हमारा जोर कॉमिक्स के कंटेंट को भी स्मार्ट बनाने का है। कॉमिक्स के कंटेंट को वक्तके साथ नहीं, उससे आगे रखना होता है। 'चाचा चौधरीका दिमाग कंप्यूटर से तेज चलता है' जैसी पंचलाइन एक दौर में इसलिए हिट हुई, क्योंकि यह उस वक्त से आगेथी। लेकिन आज के वक्त में इस पंचलाइन का कोई असर नहीं रह गया है। इससे यही बात साफ होती है कि हमें परंपरागत शैली को छोड़ना होगा।

इसके अलावा एक बात और अहम है। वह यह कि कॉमिक किरदारों से पढ़ने वाले खुद को कनेक्ट रखें, इसके लिए वरायटी पर भी जोर देनाचाहिए। आप देखिए कुछेक सुपरपावर के किरदार को छोड़ हर देश, हर संस्कृति से ताल्लुक रखने वाला किरदार ही उस देश में हिट होता है। मसलन, अभी हमने आईपीएल पर आधारित एक कॉमिक्स निकाली। यह अपने देश में हिट हो सकती है, क्योंकि क्रिकेट यहां जुनून है, लेकिन दूसरे देशमें शायद इससे लोग खुद को जोड़ न पाएं। मुझे पक्का यकीन है कि कॉमिक्स की दुनिया बड़ी शिद्दत के साथइन बदलावों को जारी रखेगी।
( प्राण देश के मशहूर कार्टूनिस्ट हैं। इनके कॉमिक किरदार चाचा चौधरी, बिल्लू, साबू वगैरह काफी चर्चित हुए।)
कॉमिक्स से जुड़े जाने-अनजाने फैक्ट्स
-कॉमिक्स का कॉन्सेप्ट यूनान से आया। स्विस आर्टिस्ट रुडोल्फ टकर ने 19वीं सदी में पहली बार कॉमिक किरदारों के साथ कामकिया।
-दुनिया की पहली कॉमिक्स एक अमेरिकी अखबार में स्ट्रिप के तौर पर आई थी।
-अनंत पाई ने अमर चित्र कथा की शुरुआत तब की थी, जबदेखा कि एक बच्चे को राम की मां का नाम पता नहीं था। इसके बाद उन्होंने कई पौराणिक कहानियों पर आधारित कॉमिक्स पेश कीं।
-80 के दशक में अमिताभ बच्चन को सुपरहीरो के रूप में पेश करते हुए कॉमिक्स बनाई गई थी।
-1985 में पहली डिजिटल कॉमिक्स अमेरिका में आई थी।
-इंस्पेक्टर आजाद के किरदार से राजकपूर इतने प्रभावित थे कि उन्होंने इसे लेकर अपनी सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म बनाने की कोशिश की। लेकिन वह अपने इस प्रॉजेक्ट को पूरा नहीं कर सके।
-जापान में कॉमिक्स को मांजा नाम से जाना जाता हैऔर इसे हर उम्र के लोग पढ़ते हैं।
-विश्व की कई यूनिवर्सिटीज में कॉमिक्सकी भाषा को समझने के लिए इसकी अलग से पढ़ाई भी की जाती है।
-2004 में मार्बल कॉमिक्स और गोथम एंटरटेनमेंट ने एक करार केसाथ स्पाइडरमैन का भारतीय संस्करण लॉन्च किया, जिसमें सारे किरदार इसी संस्कृति के थे। मुंबई बैकड्रॉप पर कहानी को आगे बढ़ाया गया था।
मशहूर फिल्मकार अनुराग कश्यप कहते हैं, 'कॉमिक्स के जरिए ही मैं फैंटसी को समझ पाया। डोगा के किरदार के पीछे मैं पागल था। वह मेरे जेहन में बस गया था। मेरे लिए वह पहला सुपर हीरो था। कॉमिक्स से बचपन की अनगिनत यादें जुड़ी हुईहैं। अब तमन्ना है कि डोगाको पर्दे पर उतारूं।'
कॉमिक्स पर आधारित चित्रकथा डॉक्युमेंट्री मेकर आलोक शर्मा कहते हैं,'हम लोग कॉमिक्स पढ़ते बड़े हुए, इसलिए उसकी याद मन में रहती है। हमने सोचाथा कि उन यादों को अपनी अगली पीढ़ी को भी सौंपेंगे। हमारे बच्चे इससे रूबरू हों, इसी तमन्ना के साथ तकनीक के सहारे कॉमिक्स की दुनिया को वापस लाने की कोशिश की।कॉमिक्स नए दौर में भी पढ़ने वालों के बीच चहेती बनी हुई है।'
डायमंड कॉमिक्स के एमडी गुलशन राय का कहना है, 'ऐसालगा कि कॉमिक्स का वह क्रेज नहीं रहेगा, जैसा पहले था। लेकिन यह अनुमान गलत साबित हुआ। कॉमिक्स सेजुड़ी इंडस्ट्री फिर से जोर पकड़ रही है। पैरंट्स को भी यह बात समझ में आ रहीहै कि कॉमिक्स बच्चों के बेहतर रचनात्मक मनोरंजन का जरिया बन सकते हैं।'
कॉमिक्स के कुछ चर्चितकिरदार
1. फैंटम
2. चाचा-चौधरी
3. राजन-इकबाल
4. नागराज
5. सुपर कमांडो ध्रुव
6. मैंड्रक
7. भोकाल
8. साबू
9. डोगा
 10. बांकेलाल.

2 comments:

  1. भाई साहब बेस्ट पोस्ट है ये|

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    1. धन्यवाद अमित जी.

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