Monday, 10 September 2012

इंद्रजाल (पात्र - परिचय) : गार्थ

इंद्रजाल (पात्र - परिचय) : गार्थ

(इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक रोचक कहानी)

 
गार्थ कई मायनों में अनूठा नायक हुआ करता था. उसके पास कोई अतीन्द्रिय शक्तियां नहीं होती थीं, कोई अद्भुत गैजेट्स नहीं, किसी अपराध-निरोधी संगठन का वह सदस्य नहीं था. केवल अपने मांसपेशियों के बल पर और अपराधियों से टकराने की दृढ़ इच्छाशक्ति के सहारे वह दुनिया भर में कहीं भी, किसी भी प्रकार के दुष्कर्मियों से अकेले ही भिड़ने को तैयार रहा करता था. उसके सहायकों की सूची भी बड़ी संक्षिप्त सी थी. केवल एक बुजुर्ग प्रोफ़ेसर लुमियर और देवी आस्ट्रा.

 
अपने साहसिक कारनामों को अंजाम देने के लिये गार्थ सुदूर तक की यात्राएँ किया करता था, जो केवल पृथ्वी तक ही सीमित न होकर कभी-कभी अंतरिक्ष की अतल गहराइयों तक का विस्तार नापा करती थीं. ये वो दौर था जब मानव अपनी धरा के गुरुत्व बल से बाहर निकलकर अंतरिक्ष की थाह लेने की रोमांचक कोशिशों में जी-जान से संलग्न था और इसका प्रभाव उस समय की कहानियों पर भी स्पष्ट नजर आता था.

इसके अलावा एक अन्य बात में गार्थ की कहानियाँ अन्य कथानायकों से अलग हुआ करती थीं कि ये था कि गार्थ एक काल-यात्री था. वह भूत और भविष्यत दोनों कालों में भ्रमण करता था. जैसे कि एक कहानी में वह ईसा पूर्व ४०० वर्ष के प्राचीन ओलम्पिक में भाग लेने वाला एक किसान था तो कभी भविष्य में पहुंचकर धरती पर आक्रमण करने वाली मशीनों के समुदाय से लोहा लेता एक योद्धा बन जाता था (कहानी - कम्प्यूटरों का राजा, ७० के दशक में प्रकाशित, इन्द्रजाल में बिना छपी). ये मैट्रिक्स तिकड़ी से काफ़ी पहले की बात है.

 

लेकिन एक बात समाचार पत्र में छपने वाली स्ट्रिप को कभी-कभी मेरे लिये ऐम्बैरॅसिंग बना देती थी वह ये थी कि इसमें न्यूडिटी का प्रयोग काफ़ी खुले मन से और बहुतायत में किया जाता था. कई महिला चरित्र बिल्कुल वस्त्रहीन चित्रित किये जाते थे (कभी-कभार स्वयं गार्थ भी). उदाहरण के तौर पर गार्थ की सहयोगी और देवी आस्ट्रा को मैंने शायद ही कभी किसी परिधान में देखा हो. अब सोच कर आश्चर्य होता है कि अब से इतना पीछे, सत्तर के दशक में, एक भारतीय समाचार पत्र में प्रकाशित होने वाले इन चित्रों में इस कदर खुलापन (इसे प्रकाशक की धृष्टता कहिये या साहस) बगैर किसी विरोध के कैसे जारी रह पाया.



जब १९८१-८२ में इन्द्रजाल कॉमिक्स ने अपने नायकों की टोली में कुछ नये सदस्यों के शामिल किये जाने की घोषणा की (जिनमें गार्थ एक था) तो, मुझे याद है, किस कदर खुशी हुई थी. कुछ ऐसी कॉमिक्स तब रंगीन चित्रों सहित पढ़ने को मिलीं जो पहले केवल श्वेत-श्याम कॉमिक स्ट्रिप के रूप में ही पढ़ी थीं. लेकिन इन कहानियों के प्रकाशन हेतु एक काम जो टाइम्स ऑफ़ इन्डिया को करना पड़ा, और जो जरूरी भी था, वो ये कि सभी न्यूड चित्रों को ब्रश चलाकर वस्त्रावरण से ढंकना पड़ा.
  गार्थ पर हम चर्चा जारी रखेंगे. आज उसकी एक कहानी पढ़ी जाए. ये कहानी इन्द्रजाल कॉमिक्स में वर्ष १९८७ में प्रकाशित हुई थी और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादियों के एक संगठन से गार्थ की मुठभेड़ के बारे में है.
  कहानी:
  दक्षिण अमेरिका में एक समुद्र-तटीय रेस्तरां में छुट्टियों का आनन्द लेकर बाहर निकल रहे गार्थ की नजरों के सामने ही एक धमाका होता है और रेस्तरां के परखच्चे उड़ जाते हैं. ये धमाका करके एक ट्रक में फ़रार होते हमलावर का पीछा कर गार्थ उसे पकड़ लेता है लेकिन वह सायनाइड पीकर आत्महत्या कर लेता है. इस हमलावर से बरामद कागजों से जापान की एक फ़र्म का पता मिलता है. इस सूत्र के सहारे गार्थ जापान जा पहुंचता है जहां उसका सामना एक गिरोह से होता है. गार्थ को मारने की कोशिश नाकाम होती है और वह गिरोह के कार्य-विवरण का लेखा-जोखा हासिल कर उसे पुलिस को मुहैया करवा देता है.
  यहां से उसे जानकारी मिलती है कि दक्षिण अमेरिका के रेस्तरां में बम रखवाने का काम हिन्द महासागर स्थित एक देश ’कम्बोइना’ की किसी ’हार्पर’ नामक कम्पनी ने किया था. गार्थ कम्बोइना पहुंचता है जहां उसकी मुलाकात सैम लॉयड नामक इंजीनियर से होती है. दोनों में मित्रता हो जाती है. सैम और उसकी स्थानीय पत्नी ’हार्पर’ कम्पनी में ही काम करते हैं और वे यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी कम्पनी का किसी तरह के आतंकवाद से कोई वास्ता हो सकता है.
  गार्थ एक युक्ति से ’हार्पर’ के मालिक ’रागोटी’ की नजरों तक पहुंचता है और अपने बलशाली व्यक्तित्व से उसे तुरन्त प्रभावित कर उसकी कम्पनी में शामिल हो जाता है. यहां उसे जानकारी मिलती है कि ’हार्पर’ नामक कम्पनी दरअसल आतंकवादियों के इस बड़े अंतर्राष्ट्रीय गिरोह का एक छद्म आवरण मात्र है. इनका वास्तविक काम तो पैसा लेकर दुनिया में कहीं भी आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना है.
गार्थ को उसका पहला असाइनमेन्ट दिया जाता है जिसके तहत उसे वेस्टइंडीज में एक सेमिनार के दौरान बम विस्फ़ोट करना है. सही समय पर गार्थ इस कुटिल योजना में गड़बड़ी पैदा कर इस प्रकार से घटनाक्रम को मोड़ता है कि उसके साथी दो आतंकी मारे जाते हैं और वह कम्बोइना लौट आता है. रागोटी को उस पर शक होता है.
गार्थ को अगला काम सौंपा जाता है. लेकिन इससे पहले कि वह अपने अभियान पर रवाना हो उसे खबर मिलती है कि उसका दोस्त सैम दुर्घटनाग्रस्त हो गया है. सैम की पत्नी जो हार्पर कम्पनी में काम करती है उसे बताती है कि असल में सैम पर हमला स्वयं कम्पनी के ही एक शीर्ष कर्मचारी स्मिथ ने करवाया है क्योंकि उसकी नजर इस महिला पर है. वह गार्थ को यह भी बताती है कि अपने नये मिशन से वे लोग जिन्दा नहीं लौट पायेंगे क्योंकि रागोटी ने उनके खाने में जहर मिला दिया है. इस बात की जानकारी गार्थ मिशन के अपने साथियों को दे देता है और वे भड़क उठते हैं. कम्पनी के कारिन्दों में विद्रोह फ़ैल जाता है और इस गड़बड़ी का लाभ उठाकर गार्थ और साथी शस्त्रागार में बम प्लांट कर देते हैं. सारी इमारत धू-धू कर जल उठती है और रागोटी के खूनी दल का सफ़ाया हो जाता है. स्वयं रागोटी भी मारा जाता है.
गार्थ सैम की विधवा से मिलता है जो स्मिथ के अंत से सन्तुष्ट है. आखिर उसे सैम की मौत का बदला मिला. गार्थ लंदन लौट आता है.
कुछ और:
इन्द्रजाल के अधिकांश अन्य नायकों से अलग गार्थ एक ब्रिटिश कॉमिक हीरो है, जबकि बाकी सभी (कुछ भारतीय पात्रों को छोड़कर) अमरीकन होते थे. ओरिजिन का ये फ़र्क कहानियों में नजर भी आता है.
ये कहानी काफ़ी तेज गति से चलती है जो गार्थ की अधिकांश कहानियों के साथ देखने को मिलता है. यही गति पाठक को बांधे रखती है. एक्शन-एड्वेंचर के शौकीनों के लिये ये एक बढ़िया कॉमिक्स है.
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  गार्थ की अपनी कहानी (साथ में इंद्रजाल कॉमिक्स से गार्थ की एक लाजवाब कथा भी)

 

अस्सी के दशक के प्रारम्भ में इंद्रजाल ने जिन नए नायकों को प्रस्तुत किया, गार्थ उनमें से एक था, पर हिन्दुस्तानी पाठकों के लिए वह इतना अनजाना भी नहीं था. हिंदी और अंग्रेजी हिन्दुस्तान दैनिक समाचार पत्रों में वह काफी पहले से छपता आ रहा था.
गार्थ की कहानियों की शुरुआत सन १९४३ में हुई जब इंग्लैंड के प्रसिद्ध समाचार-पत्र डेली मिरर (Daily Mirror) ने एक नये चरित्र को कॉमिक स्ट्रिप के रूप में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया. स्टीफ़न डोलिंग (Stephen Dowling) को, जो कि उस समय के प्रसिद्ध और व्यस्त कथा लेखक और कलाकार थे, इस नये चरित्र को अमली जामा पहनाने और संवारने हेतु चुना गया. उन्होंने अपने रचे इस चरित्र को जब अंतिम स्पर्श दिया, तब गार्थ उस रूप में हमारे सामने आया, जैसा कि अब हम उसे पहचानते हैं.

गार्थ की कहानी



यूरोप में स्कॉटलैण्ड के उत्तरी तट से और भी उत्तर की ओर तकरीबन १०० छोटे द्वीपों का एक समूह है. आर्कटिक वृत्त में स्थित इन टापुओं को शेटलैण्ड (Shetlands) कहा जाता है. काफ़ी समय हुआ, एक छोटी सी नौका पर बहता हुआ एक बहुत छोटा बच्चा न जाने कहां से इन्हीं में से एक टापू पर किनारे आ लगा. उस टापू पर बसने वाले एक बुजुर्ग दम्पत्ति की नजर उस पर पड़ी और उन्होंने प्रेम के वशीभूत होकर उस निराश्रित बालक को अपना लिया. इस प्रकार किस्मत के सहारे उस अनाथ बालक के पालन-पोषण का प्रबंध हो जाता है. बड़ा होने पर यही बच्चा गार्थ बनता है और असीम बलशाली युवा के रूप में पहचान बनाता है.



आगे चलकर वह समुद्री सेना में शामिल होता है और अपने पराक्रम से द्रुत प्रगति करता हुआ कैप्टेन की रैंक तक पहुंचता है. एक युद्ध के दौरान उसके शिप को टॉरपीडो से नुकसान होता है और डूबते जहाज से वह एक लकड़ी के लठ्ठे पर तैरता हुआ एक टापू पर किनारे जा लगता है. (कहानी में इस टापू को ’तिब्बत’ में कहीं स्थित बताया गया था. लेकिन यहां कहानीकार की गलती पकड़ में आती है क्योंकि तिब्बत चारों ओर से भूमि से घिरा हुआ प्रदेश है. उसकी सीमा कहीं भी समुद्र से नहीं लगती). किसी चोट की वजह से वह स्मृतिलोप का शिकार हो चुका है और अपने बारे में सबकुछ भूल चुका है. वहां के कबीले की एक लड़की ’गाला’ उसे देख लेती है और उसकी देखभाल करती है. गाला की स्नेहमयी सहायता गार्थ को जल्द ही चलने-फ़िरने में समर्थ बना देती है और वह अपनी शारीरिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर लेता है. लेकिन अब भी गार्थ को अपने पूर्व जीवन की कोई भी स्मृति नहीं है.



बाद में उसके मित्र प्रोफ़ेसर लुमियर गार्थ का मनोविश्लेषण द्वारा इलाज करते हैं और एक विकिरण गन की मदद से उसकी विलोपित स्मृति को लौटाने में सफ़ल होते हैं. इस बीच गार्थ के सम्पर्क में ’आस्ट्रा’ नामक देवी भी आती है जो गार्थ के प्रेम में पड़ जाती है. आस्ट्रा गार्थ की तब-तब सहायता करती है, जब भी वह किसी बड़ी कठिनाई में पड़ता है. (आस्ट्रा सौंदर्य की देवी वीनस का ही एक अन्य नाम है, जिसका कि जिक्र ग्रीक मिथकों में आता है.)

सन १९७१ में प्रकाशित कहानी "जर्नी इन्टू फ़ीयर" (Journey into fear) में गार्थ की पृष्ठभूमि पर एक नया एंगल डाला गया. इस कहानी के अनुसार गार्थ के एक पूर्वज धरती से परे सैटर्निस (Saturnis) नामक ग्रह के वासी थे जो एक वैज्ञानिक सर्वेक्षण के सिलसिले में पृथ्वी पर आये थे. उन्हें यहां किसी कन्या से प्रेम हो जाता है और इस युग्म द्वारा जिस सन्तान को जन्म दिया जाता है वही आगे चलकर गार्थ की पीढ़ी का जनक होता है. शायद गार्थ के असीम शक्तिवान होने की छवि को एक ठोस आधार देने के लिये इस प्रकार की कल्पना की गयी होगी.

अपनी बहादुरी और साहस के जलवे दिखाता गार्थ एक परम बलवान योद्धा के तौर पर जाना जाता है. दुनिया में कहीं भी, किसी भी अन्याय और अत्याचार के विरोध में खड़े होने और दुष्टों से टक्कर लेने की प्रकृति के चलते कितनी ही बार उसे जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ता है लेकिन हर बार वह मौत को धता बता कर निकल आता है. हालांकि इसमें कभी-कभी किस्मत भी अपना खेल खेलती है और उसके बचाव में मददगार साबित होती है. कहते भी हैं ना "फ़ॉर्चून फ़ेवर्स द ब्रेव".

हालांकि मुश्किल मसलों पर सलाह हेतु वह प्रोफ़ेसर लुमियर का रुख करता है, पर उसकी कथाओं में स्वयं गार्थ भी बहुत समझदार इन्सान के रूप में चित्रित किया जाता रहा है. अपने लौमहर्षक कारनामों को अंजाम देने के दौरान अधिकांश मौकों पर हम उसे ऐसी स्थिति में पाते हैं जब उसे पलक झपकते ही तुरन्त कोई निर्णय लेना होता है. ऐसे ही अवसरों पर हम उसके बुद्धि-चातुर्य का परिचय पाते हैं.

लेकिन गार्थ का व्यक्तित्व एक कुलीनवर्गीय गरिमा से आलोकित और गम्भीरता से परिपूर्ण है. उसकी शौर्य गाथाओं से गुजरते हुए हम शायद ही किसी अवसर पर उसे हंसता (यहां तक कि मुस्कुराता भी) पायेंगे. अपने मिशन और कार्य के प्रति पूर्ण-रुपेण समर्पित इस बहादुर योद्धा के कारनामों के संसार में उतरना सचमुच एक अद्भुत अनुभव से गुजरना है.

छिट-पुट

गार्थ की चर्चा हो और उसकी कहानियों में दर्शायी जाने वाली टॉपलैस सुन्दरियों का जिक्र ना आये, ये कैसे सम्भव है? पिछली कड़ी में मैंने बताया था कि सत्तर और अस्सी के दशक में हिन्दी के समाचार-पत्र में छपने वाले इन चित्रों को लेकर मुझे किस प्रकार शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी (बचपन के दिन थे). इसी क्रम में ये जानना भी रोचक है कि फ़्लीट्वे (Fleetway) ने जब १९७५ में "The Daily Mirror Book of Garth" प्रकाशित की, जिसमें उसके प्रमुख कलाकार फ़्रैंक बैलामी (Frank Bellamy) द्वारा बनाये गये क्लासिक चित्र थे, तो उन सभी टॉपलैस महिलाओं के चित्र या तो सैंसर कर दिये गये या फ़िर उन्हें बिकिनी नुमा परिधान पहना दिये गये. कुछ वैसे ही जैसे इन्द्रजाल कॉमिक्स ने भारत में किया.
लेकिन अगले ही वर्ष (१९७६ में) प्रकाशित अंक में इस प्रकाशन ने, शायद पिछले अनुभव से सीख लेते हुए, इस बार चित्रों में अपनी ओर से कोई परिवर्तन नहीं किया और सभी चित्रों को उनके मूल स्वरूप में यथावत प्रकाशित किया.

और अब हम बढ़ते हैं आज की कॉमिक्स की ओर.


कहानी:

कहते हैं कि कानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. अपराधी कितना ही शातिर और चालाक क्यों न हो, कभी-न-कभी कानून के शिकंजे में पहुंचता ही है. शायद किस्से-कहानियों और फ़िल्मों के लिये यह एक सच हो लेकिन वास्तविकता क्या है, किसी से छुपा नहीं. समाज में कितने ही ऐसे अपराधी हैं जो सबूतों के अभाव में न्यायालय से बरी किये जा चुके हैं. कभी कोई साक्ष्य नहीं मिलता तो कभी दहशत के मारे कोई गवाही देने सामने नहीं आता. ऐसे में कई बार पुलिस अधिकारी हाथ मलते रह जाते हैं तो न्यायालय मन मसोसकर.

कहानी है एक ऐसे संगठन की जिसे खड़ा किया है उच्च पदों से सेवानिवृत्त हुए कुछ ईमानदार और जज्बे वाले अधिकारियों की. ये वो लोग हैं जो अपराधियों को उनके सही अंजाम तक पहुंचाने की अपनी तमाम कोशिशों को जीवन भर नाकाफ़ी साबित होता देखते आये हैं. पुलिस की राह में आने वाली बंदिशों और कानून की अड़चनों की वजह से बड़े अपराधियों को बेखौफ़ छुट्टा घूमते देखकर इनका खून खौलता है और वे मानते हैं कि समाज की भलाई इसी में है कि सभी दुर्जनों को कैसे भी करके उनके दुष्कर्मों की सजा अवश्य दी जानी चाहिये.

प्रसिद्ध जीवाणुविज्ञानी मैक्स होलिण्डर छुट्टियों के दौरान मछलियाँ पकड़ते हुए अचानक दम तोड़ देते हैं. गार्थ और प्रोफ़ेसर लुमियर उस वक्त उनके साथ ही थे. मौत का कारण एक अनजान विषाणु (Virus) है. ये काम है ’मछुआरे’ नामक उस रहस्यमय संगठन का जिसका उल्लेख हम ऊपर कर चुके हैं. ’मछुआरे’ इस विषाणु का प्रयोग अपने काम में (यानि बड़े गिरोहबाजों और अपराधियों के सफ़ाये में) करना चाहते है. अपने संगठन की गोपनीयता बनाए रखने की खातिर वे होलिण्डर को भी मौत की नींद सुला देते हैं.

गार्थ और लुमियर को पता चलता है कि मृत वैज्ञानिक एक गोपनीय प्रोजेक्ट पर कार्य कर रहे थे जिसके तहत वे उसी विषाणु पर शोध कर रहे थे जिसने उनकी जान ली है. ये एक ऐसा प्राणघातक विषाणु है जो शरीर में तब सक्रिय होता है जब उसका शिकार पानी के नजदीक जाता है.

होलिण्डर की भतीजी (और सचिव) एम्मा प्रोफ़ेसर के बारे में जानकारी देती है एवम गार्थ को उनकी प्रयोगशाला दिखाने ले जाती है. यहां गार्थ की मुठभेड़ दो किराये के गुण्डों से होती है जो प्रयोगशाला को नष्ट करने के लिये मछुआरों द्वारा भेजे गये हैं. बाद में एक पब में गार्थ उनमें से एक को पहचान लेता है.

गार्थ को अपने संगठन के रास्ते की रुकावट बनते देखकर मछुआरे उसे मारने की कोशिश करते हैं. लेकिन गार्थ इन सबसे बचता हुआ इन लोगों के कानून से ऊपर उठने के प्रयासों को विफ़ल करता रहता है. धीरे-धीरे मछुआरे बिखरना प्रारम्भ हो जाता है और अंततः पूरी तरह समाप्त हो जाता है.
कुछ और भी है:
जब बचपन में पहली बार ये कहानी पढ़ी थी, तो यह देखकर आश्चर्य में था कि गार्थ आखिर बुरे लोगों का साथ क्यों दे रहा है? क्यों वो इन खतरनाक गिरोहबाजों को सावधान कर उनकी जान बचा रहा है? मछुआरों के विचार और कार्यप्रणाली ने मुझे प्रभावित किया था और मेरा यही मानना था कि वे लोग कुछ गलत नहीं कर रहे थे. बाद में जाकर ये सोच-समझ विकसित हुई कि भले उद्देश्य को सामन रखकर भी यदि बुरे काम किये जाएं तो वे आखिरकार अपराध की ही श्रेणी में आते हैं.

जो भी हो, इस जबरदस्त कहानी ने सोच को काफ़ी प्रभावित किया और कई विचारश्रंखलाओं को जन्म दिया. एक शानदार कहानी.

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